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प्राथमिकता बनें विकल्प नहीं – Be a Priority not an Option (in Hindi)

  • 11 Jul 2018
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सोशल नेटवर्किंग के इस दौर में यह सम्भव है कि आपके पास हज़ारों मित्र हों लेकिन कोई भी वास्तविक मित्रता नहीं । बहुत हैं जो आधी रात को पार्टी में शामिल होने आ जाऐंगे लेकिन उनमें से कितनों पर आप आवश्यकता के समय में मदद पाने के लिए निर्भर रह सकते हैं । हमारे पास बहुत से विकल्प हैं परन्तु हमारी प्राथमिकता कौन है? हम कितने ऐसे लोगों को जानते हैं जो वास्तव में हमारे ऊर्जा के स्तर को, हमारे उत्सा‍ह को और हमारे स्वाभिमान को बढ़ाते हैं ।

हमारे प्रतिपल बढ़ते सामाजिक दायरों में, जहाँ दुर्भाग्यवश ऐसा लगता है कि भाईचारे के स्थान पर प्रतियोगिता को वरियता प्राप्त है, कुछ लोग दूसरों से कहीं अधिक हट के दिखते हैं और दूसरों से अधिक सफल हैं । ये वही लोग हैं जो अंकों के स्थान पर हृदय जीतने का लक्ष्य रखते हैं, जो बोलने की अपेक्षा अधिक सुनते हैं, कुछ स्वीकार करने के बजाय कुछ अर्पण करते हैं, और जो आपके लिए और आपके साथ ‘अतिरिक्त दूरी’ तय करने के लिए तैयार हैं, कुछ दिखावा करने के लिए नहीं बल्कि वही उनका असली रूप है – कोई विशेष व्यक्ति!
अपने जीवन में ऐसे लोगों को पा कर हम स्वयं को भाग्यशाली मानते हैं, लेकिन कितने लोग हमारे बारे में ऐसा कहेंगे?
मुझे किसी के जीवन में प्राथमिकता बनने से पहले स्वयं ही स्वयं का परम मित्र बन कर अपने जीवन को प्राथमिकता देनी होगी; जब मैं अपनी स्वयं की कीमत को पहचानती हूँ तभी मैं दूसरों को महत्व दे सकती हूँ और बदले में वे भी मेरे महत्व को जानेंगे । एक अच्छा मित्र बनने का अर्थ है मुझे आलोचना करने की बजाय सराहना करनी है, तूफान के समय सहारा देना है, अपेक्षा या चाहना को छोड़कर शालीनतापूर्वक स्वागत करना है । इसके लिए बहुत अधिक स्वाभिमान की आवश्यकता है । इस स्वाभिमान से दूसरों से स्वत: ही आदर प्राप्त होगा ।
इसके लिए आवश्यक आंतरिक कार्य करना होगा जैसे – स्वयं को दूसरों से तुलना नहीं करें; अपनी लीग स्वयं तैयार करें । अपने कर्मों के पीछे के इरादों की शुद्धि पर ध्यान दें । ऊँचे सिद्धाँत, स्तर और अनुशासन और अच्छा चरित्र स्थापित करें और इससे स्वत: ही आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी । प्रचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी । नेकनीयता और सत्यनिष्ठा स्वयं ही अपने को सिद्ध करेंगी ।


निस्संदेह, अगर कोई नहीं चाहते तो किसी के जीवन में स्वयं को प्राथमिकत बनाने के लिए मैं बाध्य नहीं कर सकती । कितना भी अच्छा ऑफर हो लेकिन कम्पनी अपने सामान को खरीदवाने के लिए ग्राहकों को बाध्य नहीं कर सकती । लेकिन इस बात का ज्ञान भी एक दिन फायदेमंद रहेगा कि ऐसी भी कोई दुकान है । जब भी आवश्यकता आन पड़ेगी उन्हें मालूम होगा कहाँ जाना है ।
हम अपने कार्यों को प्रतिदिन प्राथमिकता के आधार पर रखते हैं, और ऐसे ही अपने सम्बन्धों को भी प्राथमिकता के आधार पर रखना अति महत्वपूर्ण है । जिस प्रकार से हमारी सबसे पसंदीदा ड्रैस जिसे पिछले 15 वर्षों से हमने पहना नहीं है फिर भी छोड़ी नही जा रही, उसी प्रकार हम अपने पुराने सम्बन्धों को भी नहीं छोड़ पाते । अगर किसी सम्बन्ध की मृत्यु हो चुकी है तो वह स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है । उसे जाने दें (अच्छी भावनाओं के साथ) और कुछ नए को आने का स्थान दें ।
इसके अतिरिक्त, अगर कोई आपकी ऊर्जा का क्षय कर रहा है, या आपका फायदा उठा रहा है तो यह इस बात का चिन्ह है ‍कि हमने स्वयं का प्रबंधन करना और मेहनत से अपनी सीमारेखा खींचना नहीं सीखा है । इस परिस्थिति में हमें और अधिक स्वाभिमान निर्माण करने की आवश्यकता है, और अधिक प्रेममय बनना है, और साथ साथ और अधिक अनासक्त । कभी कभी अपने बड़े हृदय के कारण हम किसी की नकारात्मकता के कीचड़ से निकालने में उनकी मदद करने का प्रयास करते हैं लेकिन स्वयं ही उसमें फंस जाते हैं! हमें अपना मूल्य बढ़ाने की और अपनी क्षमता को जानने की आवश्यकता है ।
अहंकार और स्वाभिमान में बहुत बारीक अंतर है । अगर हम दूसरों की मदद इसलिए कर रहें हैं कि हमें स्वीकार किया जाऐ या हमें पहचान मिले तो इसका अर्थ है कि हमें स्वयं के मूल्य का अहसास नहीं है, यह उल्टा अहंकार है । दूसरे प्रकार का अहंकार है जिसमें मनुष्य प्रशंसा का अधीन बन जाता है, महसूस करता है कि उसे ही सबसे बेहतर मालूम है, और कहता है: “मेरी ओर देखो, मैं कितना बेहतर इंसान हूँ!” सच्चे और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों के लिए अहंकार आधार नहीं हो सकता ।
अब समय है… अपनी योग्यता को बढ़ाने का और अपना स्वयं का एक स्तर तैयार करने का । चाहे दूसरे उनके जीवन में आपको प्राथमिका दें या नहीं दें, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, स्वयं को प्राथमिकता दें और अपनी चमक बढ़ाते चलें ताकि सभी विकल्पों में से आप उनका प्राथमिक विकल्प बनें!
 
© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK
 

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