आवश्यकता बनाम चाहना
- 10 Jul 2018
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हमारे जीवन में बहुत से ऐसे पल आते हैं जब हमें कुछ ऐसा करना पड़ता है जिसे हम करना नहीं चाहते, जैसे किसी बूढ़े या बीमार की सम्भाल करना या घर का कुछ काम करना । कोई कार्य हमें करना पड़ रहा है या हम उस कार्य को करना चाहते हैं, इन दोनों में क्या अतंर है? वैसे भी हमें वह कार्य हर हाल में करना ही है तो क्या इस बात का कोई विशेष महत्व है? अंतर बहुत सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण है ।
अगर मुझे लगातार यह महसूस हो रहा है कि ‘मुझे यह करना पड़ रहा है’ तो उस कार्य में कोई शक्ति शेष नहीं रहती, और ऐसा महसूस होगा कि मैं स्वयं को एक गधे की तरह धक्का दे कर चला रही हूँ । मुश्किल ही कोई जोश या प्रेरणा होगी और शायद हमें जबरदस्ती करने जैसा लगेगा और कार्य को करते हुए नाराज़गी होगी । ऐसा महसूस होगा कि कोई विकल्प नहीं बचा और इसलिए ‘करना पड़ेगा’ जैसी बोझिल भावना आ जाती है ।
वास्तव में किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिए कि उन्हें कुछ करना ‘पड़ता’ है । ठीक है बच्चों को रहने दें – उनका प्रशिक्षण आवश्यक है! लेकिन समय ऐसा है कि हम अपने जीवन की जिम्मेवारी लेने के लिए प्रर्याप्त सशक्त महसूस नहीं करते, प्रत्येक पग पर लगता है कि लगातार कोई वस्तु या व्यक्ति हमें नियन्त्रित कर रहा है; हमें लगता है कि हमें ट्रैफ़िक में बैठना पड़ता है, हमें कतारों में खड़ा रहना पड़ता है, हमें बिल भरने पड़ते हैं, हमें अपने सम्बन्धियों को बुलाना पड़ता है!
लेकिन बड़े होने के नाते हमें यहाँ अपने उद्देश्य को समझना और सराहना सीखना होगा, और साथ ही उन उद्देश्यों की पूर्ति करने हेतू हमारे कर्मों के कारण भी जानने होंगे । अगर आप प्रतिदिन काम पर जाते हो तो समझें कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं । क्या आपको यह अरूचिकर लगता है, एक आवश्यक पाप जो आपको अपने बिल भरने के लिए करना पड़ता है? या आप इसे दूसरे शब्दों में कहे तो… आपकी नौकरी आपके लिए सुरक्षा और संतुष्टता की भावना लेकर आती है इसके लिए उसका धन्यवाद करें । अपनी नौकरी में उन बातों और लोगों की तलाश करें जो संतुष्टता और खुशी लातें हैं । अपने रवैये को थोड़ा हल्का करें और आपको आश्चर्य होगा कि लोग कैसे प्रतिक्रिया देते हैं । गपशप, आरोप लगाने और शिकायत करने से बाहर निकल आयें और आप और अधिक नियन्त्रित और सशक्त महसूस करना आरम्भ कर देंगे ।
अगर किसी ने अपने मात-पिता की घर में सम्भाल करने का निर्णय लिया है तो इस वास्तविकता को ध्यान में रखें कि उन्होंने बहुत समय तक आपकी सम्भाल की है और उनकी सम्भाल करना गौरव की बात है । करूणा और आदर की भावनाओं को उजागर करें, इस बात का अहसास करें कि आप अपने बच्चों के लिए अनुकरणिय व्यक्ति बनने का उदाहरण पेश कर रहे हैं… और सम्भव है वे भी एक दिन आपके स्थान पर हों!
मेरे अनुभव से, जब मैं वास्तव में कुछ करने का ठान लेती हूँ तो प्रोत्साह आरम्भ हो जाता है; स्फूर्तिदायक ऊर्जा का निर्माण हो जाता है । हाँ, निसंदेह आरम्भ में अगर मुझे कुछ समय स्वयं को मनाने में लग जाता है कि मैं यह कार्य करना चाहती हूँ, मुझे यह करना पड़ नहीं रहा है, फिर भी मुझे सफलता मिलती है! लेकिन मेरा मानना है कि हमें इस प्रक्रिया से गुज़रना चाहिए जिसमें हम उस कार्य में शामिल होने के लिए स्वयं की सराहना करें और जो कुछ भी करें उसे प्रेम से करें । इस विधी से आप जो कुछ भी करेंगे उसका आनंद लेंगे । आप तीव्र गति से इसको पूरा करेंगे और दूसरे अनेक फायदे होंगे । खोज करने और सीखने का मार्ग खुला रहेगा जब आप यह अहसास करेंगे कि इसका कुछ गहरा कारण होगा कि: ‘मैं ही क्यों?’ और ‘यहाँ ही क्यों?’ और ‘अब ही क्यों?’
अगर कोई प्रतिरोध है तो स्वयं से पूछें क्यों? शायद यथार्थत: वही कारण है कि मुझे इस प्रकिया से गुज़र कर गहराई में उतरना चाहिए और आध्यात्मिक और भावनात्मक स्तर पर आगे बढ़ना चाहिए ।
‘करना पड़ता है’ से लगता है कोई बाहर से हमें बाध्य कर रहा है । ‘करना चाहती हूँ’ से हमें अपने अंतर से करने का प्रोत्साहन मिलता है । तो हमें किसका चयन करना चाहिए? स्व-प्रोत्साहित रहने का या इस बात की प्रतिक्षा करें कि दूसरे हमें नियंत्रित करें?
कार्यों को प्रेमपूर्वक करने का चुनाव करें, यह उत्तम ऊर्जा है और अपनी आत्मा के खाते में अच्छे कर्मों को जमा करने के लिए आपको बोनस में आर्शीवाद मिलेंगे! जब हम चीज़ों को बदलने का प्रयास करते हैं और ‘करना पडे़गा’ के स्थान पर ‘प्रेम से’ करते हैं तो हम अपने भाग्य के निर्माता बन जाते हैं और निस्संदेह अपनी खुशी के भी!
अब समय है… जो कार्य आपको करना ‘पड़ेगा’ उसे प्रेम से करने का निर्णय लेने का तो हर कर्म चुनिन्दा और हमारे प्रगति का सुअवसर बन जाता है ।
© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK
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