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और अधिक सम्भाल करें

  • 14 Jul 2018
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जब किसी भी चीज़ को सम्भाल और सावधानी का मनोभाव दिया जाता है, तो सम्भवतया चीज़ें और अच्छे ढ़ंग से सम्पूर्ण होंगी । जब हम असावधान होते हैं, तो अव्यवस्था और उलझन पैदा हो जाती है और आमतौर पर चीज़ें खराब हो जाती हैं । जितनी ऊर्जा हम किसी भी वस्तु को देते हैं बिल्कुल उतनी ही हमें वापिस भी मिलेगी ।

कभी कभी साधनों के प्रयोग में हम असावधान और विचारहीन बन जाते हैं । यह हमारी व्यवसायी और व्यक्तिगत दोनों जीवनों पर लागू होती है । लेकिन इस असावधानी का प्रभाव जीवन पर भी पड़ सकता है । बहुत सी कम्पनीयाँ स्टाफ की असावधानी से बहुत घाटे में चली गई हैं । उदाहरण के लिए कमज़ोर योजना के कारण या फिर अतिव्ययी बनने या अपनी सामाजिक छवि को ऊँचा बनाए रखने के लिए भोजन और दूसरे कीमती सामान को बर्बाद करना । याद रखें, अगर इन सबके लिए हमें अपनी जेब से कीमत चुकानी पड़े तो हम थोड़ा और ध्यान देंगे क्योंकि अपनी जेब का ही कम होगा ।
अगर हम थोड़ी ओर सम्भाल करने के लिए समय निकालें, और सचेत रहें और सही ढ़ंग से सोचें, फिर शायद हम समय, धन और बहुत से दूसरे महत्वपूर्ण साधन बचा लें । जो कुछ भी हमारे पास है हम में से कितने उस की सराहना करते हैं? बिल्कुल साधारण और अक्सर जिसका सही मूल्य नहीं जाना जाता वह है शिक्षा, सेहत और लोक-कल्याण सेवा तक विकसित देशों में हमारी पहुँच है । कम भाग्यवान देशों में ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके पास इन बातों का सुख नहीं है और उनके लिए यह प्रतिदिन संघर्ष की बात है । इस लिहाज से देखभाल का अर्थ है सराहना करना ।


बच्चे अगर प्रकृति को समझें और उससे जुड़ पाऐं तो वे स्कूल में बहुत अच्छा प्रदर्शन करेंगे; किस प्रकार हमारे उत्कृष्ट ग्रह से हमें सब साधन मिलें हैं और हमारी पालना हो रही है । कुछ स्कूल इस प्रकार की मेहनत कर रहे हैं । यह बहुत लाभप्रद होगा अगर छोटे और बड़े दोनों ही इस प्रकार की जागरूकता बनाए रख सकें कि किस प्रकार हर चीज़ आपस में जुड़ी है । फिर हम पाऐंगे कि संसार में लोग बहुत खुश और संतुष्ट हैं ।
अगर हम अपने बच्चों को यह सिखा सकें कि कैसे क़दर करनी है और अपने अच्छे भाग्य को स्वीकार करना है तो वे जो कुछ भी उनके पास नहीं है उसकी शिकायत करने के स्थान पर जो कुछ भी उनके पास है उसकी सराहना करेंगे । अगर हम अपने बच्चों को सिखा सकें कि थोड़ी और सम्भाल करो और अपनी पढ़ाई को और समय दें, उनको सिखाऐं कि ध्यान कम भटकाऐं ताकि वे अधि‍क सीख सकें । हो सके तो इस प्रकार का कार्यकलाप जिसमें वे भौतिक दुनिया से जुड़ें, केवल अप्रत्यक्ष जगत (वरचुअल वर्ल्ड) में खेलने में कम समय देने से वे दोबारा स्वयं से जुड़ेंगे और दोबारा स्वयं का सृजन करेंगे । पढ़ाई के समय ध्यान कम भटकाने का अर्थ है कि उनके पास खेलने के लिए और अपनी पंसद के मनोरंजक कार्यकलापों के लिए अधिक समय होगा ।
हमारी ऊर्जा के प्रकम्पन्नों के प्रति तत्व भी प्रतिक्रिया देते हैं । इसका अर्थ है कि यह अनिवार्य हो जाता है कि हम अपने आसपास की वस्तुओं को प्रेम और सम्भाल से करें । जो भी वस्तुऐं हमारे पास हैं उनको हम कितने आदर के साथ प्रयोग करते हैं? उदाहरण के लिए यह बेहतर होगा कि कम्बल या स्वेटर को हम तह लगा कर बिस्तर पर रखें ना कि उन्हें ऐसे ही फेंक दें । यह अच्छा रहेगा कि हम बर्तन धोकर उन्हें उनके स्थान पर रख दें ना कि रसोई के सिंक में उनका ढेर लगने दें । इस तरह चीज़ें लम्बे समय तक चलेंगी, सालों तक, और हमें प्रति वर्ष नई चीज़ें खरीदनें में समय नहीं लगाना पड़ेगा ।
जब हम चीज़ों की सम्भाल करते हैं तो हम स्वयं को भी आदर दे रहे होते हैं । हमारी गलियों में कूड़ा आदर का प्रतीक नहीं है । हम में से बहुत से लोग अस्वच्छ और अस्तवयस्त घर में रहना पसंद नहीं करेंगे, फिर हम हमारे संसार का और स्वयं का निरादर क्यों करते हैं? जब हम अपने वातावरण का आदर करते हैं तो वातावरण भी हमारे प्रति आदर प्रकट करेगा । सकारात्मक ऊर्जा की तरंगे वापिस आती हैं । स्वच्छ और व्यवस्थित पर्यावरण हमें शांति, स्वस्थ्ता और आराम की महसूसता कराऐगा । यह जानकर हमें बहुत अच्छा महसूस होता है कि प्रत्येक वस्तु सही जगह और सही प्रकार से है । इसलिए प्रकृति की चीज़ें हमें बहुत प्यारी लगती हैं क्योंकि हरेक वस्तु की एक व्यवस्था है और एक प्राकृतिक लय है ।

जब हम लोगों की सम्भाल करते हैं तो हम उनमें निवेश करते हैं । हम अच्छे कर्मों का बीज लगाते हैं और उसके बदले में सदैव प्रेम और करूणा को पाते हैं । सम्भाल करना कभी व्यर्थ नहीं जाता । जब हम अपनी सकारात्मक विशेषताओं को भली प्रकार प्रयोग में लाते हैं तो वही विशेषताऐं दूसरों की ओर से भी हमें वापिस प्राप्त होंगी । यह प्रत्यावर्ती बाण की भाँति कार्य करता है । अगर हम लोगों के प्रति वह परवाह दर्शाते हैं तो वह परवाह और आदर प्रतिबिंब की भाँति हमें वापिस प्राप्त होता है । निस्संदेह यह सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पर समान रूप से लागू होता है! तो सकारात्मक होने में ही फायदा है ।
अब समय है… थोड़ी और सम्भाल करने का और बेपरवाह न बनने का । जो कुछ भी हमारे पास है और जो कुछ भी हम करते हैं उसके प्रति लापरवाह नहीं बनना है । हर घड़ी हमारे विचारों को लेकर, देखभाल करने और ना करने को लेकर हमारे सामने विकल्प है । अंतर बहुत थोड़ा है लेकिन असर बहुत स्थाई और हमारे अहसास से कहीं अधिक होता है ।

© ‘It’s Time…’ by Aruna Ladva, BK Publications London, UK

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